शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

जिन कश्मीर नही देख्या.......3

रेस्टारेंट का मालिक तुरंत बाहर निकल आया, मुझसे कहा आप परेशान ना हो मै बात करता हूंवो चारों आपस में कश्मीरी भाषा मे तेज आवाजों में बातें कर रहे थे, 5-7 मिनटों बाद रशीद मेरे पास आया भाई साहब परेशान होने की जरूरत नहीं है ... थोड़ी ही देर में निकल जायेंगे, जिस रास्ते से हम जा रहें हैं, वहां सब ठीक हैरेस्टारेंट का मालिक  भी बोलने लगा देखिये सर बात अक्सर इतनी बड़ी होती नहीं, जितनी बताई जाती है, थोड़ी देर रुकिये अभी पूरी जानकारी मिल जायेगी, कश्मीर की सबसे बड़ी प्राब्लम यही है यहां की हर बात बढ़ा चढ़ा कर बताई जाती है, आप सब आराम से बैठिये मैं और चाय बनवाता हुँउसके हट्ते ही पत्नी मेरे पास आयी, चेहरे पर चिंता थी  ज्यादा गड़बड़ है क्या...” “नहीं-नहीं कोई छोटी मोटी वारदात हुई है, परेशान होने जैसी कोई बात नहींमैने कहा.






यात्रा अभी शुरू ही हुई थी और ये घट्ना... कश्मीर के बारे में अब तक पढ़ा-सुना और बताया गया आखों के सामने एक क्षण में घूम गया. मुझे अपने कश्मीर भ्रमण का सपना यहीं खत्म होता नज़र आ रहा था. सामने हल्की धूप मे चमकती बर्फीली चोटियाँ पास आने का इशारा कर रही थी और ठंडी हवा के हल्के झोंके कानों में फुसफुसाकर कह रहे थे सब ठीक है सब ठीक है

तभी मिलिट्री की एक ट्रक वहां आकर रुकी, फौजी अफसर की वर्दी पहने एक शख्स नीचे उतरा और पीछे बैठे सभी फौजियों को उतरने का आदेश दिया और हमारी ओर बढ़ा  सभी को चाय”“जी रेस्टारेंट के मालिक ने कहा, तब तक रशीद उस अफसर के पहुँच गया, मै भी बढ़ा.सर अनंतनाग के पास किसी वारदात की खबर है, मै टूरिस्ट लेकर श्रीनगर जा रहा हूं, क्या.. आगे बढ़ना ठीक रहेगा...” “नहीं-नहीं परेशान होने की जरूरत नहीं अनंतनाग के पास कुछ आतंकवादियॉ को फौजियों ने घेर लिया था, गोलीबारी हुई और सारे आतंकवादियॉ को मार गिराया गया, आप सब बेफिक्र होकर श्रीनगर जा सकते हैं” “थैक्यू सरमैने कहा उम्मीद है आगे भी सब ठीक-ठाक रहेगाफौजी अफसर मेरी ओर बढ़ा और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया मेजर संजय शर्मा मैने उससे गर्मजोशी से हाथ मिलाया मै अय्यर छत्तीसगढ़ से”“आप बेफिक्र होकर पूरा कश्मीर घूमिये, इंडियन आर्मी पर भरोसा रखिये, वो हर जगह आपको सुरक्षित रखेगी और वैसे भी अब स्थिति पहले से काफी बेहतर है, अच्छी बात तो ये है की बेहद खराब समय मे भी यहां ढेरों टूरिस्ट आते रहे. आपको मै बता दूं यहां का आम आदमी भी अमन चाहता है, बस थोड़े से लोग हैं जो आतंकवादी गतिविधियों मे लगे हैं, विश्वास कीजिये बहुत जल्द सब कुछ सामान्य हो जायेगाउस फौजी अफसर की आत्मविश्वास भरी बातें सुनकर मुझे इंडियन आर्मी पर गर्व हो आया. इन सब बातों के बीच चाय की प्यालियां आयी और खत्म भी हो गयी. मेजर संजय शर्मा ने एक बार फिर मुझसे हाथ मिलाया और ट्रक में ड्राइवर के बगल मे सवार हो गया, एक-एक कर सारे फौजी भी ट्रक में सवार हो गये, ट्रक स्टार्ट होकर आगे बढ़ने लगी, हम सब तब तक हाथ हिलाकर बाय करते रहे जब तक ट्रक आखों से ओझल ना हो गयी.

मैने रेस्टारेंट के मालिक को चाय नाश्ते के पैसे दिये  धन्यवाद दिया और रशीद से चलने को कहा. हम सब गाड़ी मे सवार होने लगे. ग़ाड़ी निकल पड़ी, 5 10 मिनट सब चुपचाप बैठे बाहर का नज़ारा देखते रहे, रशीद हमारी मन: स्थिति समझ रहा था. अचानक उसने पूछा सर कभी आपने कश्मीरी गीत सुना है मैने इंकार मे सिर हिलाया और रशीद ने एक गीत मधुर आवाज मे गाने लगा, हम शब्दों का अर्थ समझ नहीं पा रहे थे मगर धुन में खो से गये. थोड़ी ही देर मे सब सामान्य हो गये रशीद का गीत खत्म होते-होते हमारा कश्मीर भ्रमण का उत्साह फिर तरोताजा हो चुका था.
 




रशीद अब रास्ते में पड़ रहे गाँव और अन्य जानकारियाँ देता जा रहा था. एक लम्बे चक्करदार घुमाव से पार होते ही सामने मिलिट्री का रोड बैरियर सामने आया, गाड़ी पास ले जाकर रोकते हुये रशीद ने बताया जवाहर टनल के पहले चेकिंग होती है कुछ जवान गाड़ी के पास आये, मुझसे व्यक्तिगत जानकारियां ली, गाड़ी के अंदर नजर घुमायी और मुस्कुराते हुये आगे बढने का इशारा किया, बैरियर खुला और हम तेजी से जवाहर टनल कि ओर बढने लगे. हवा में ठंडक बढ़ने लगी हम लोगों ने खिड़कियों के शीशे उठा दिये.



















... क्रमश:...

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

जिन कश्मीर नही देख्या.......2

 उसे जम्मू स्टेशन कहा जाय या फौजी छावनी, अंदर बाहर हर तरफ फौजी जवान फैले हुए थे, सुरक्षा और भय कितने रिलेटिव टर्म हो सकते हैं, आप ऐसी जगह पहुंचकर ही समझ सकते हैं. स्टेशन से नज़दीक ही मेरा होटल पहले से ही तय था, हम अपने कमरे में पहुंचे, बच्चे टी.वी. में उलझ गये और पत्नी और मां आराम करने मे. इस् बीच मै निकल पड़ा भ्रमण के लिये गाड़ी तय करने. कुछ एक लोगों से मिलने और बात करने के बाद मुझे स्कर्पियो ही सबसे उपयुक्त गाड़ी लगी. सुबह 6 बजे निकलने का समय तय हुआ, हमारा ड्राइवर रशीद श्रीनगर का ही रहने वाला था.  चाय की चुस्कीयों के साथ् करीब आधे घंटे तक मै उससे जानकारीयां लेता रहा और होट्ल लौट आया. मेन रोड से ही लगे हुए एक रेस्टोरेंट मे हमने रात डिनर किया, सुबह जल्दी उठना था, लौटकर 9.30 ही सब सो गये.
अगली सुबह हम सब जल्दी उठे, रशीद भी गाड़ी लेकर आ गया था, होटल मे      सुबह- सुबह बहुत अच्छी चाय मिली, तरोताजा होकर करीबन 6.30 बजे हम निकल पड़े अपने कश्मीर सफर पर.
थोड़ी ही देर में पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया, छोटे-छोटे गाँवों से गुजरते हुए हम अचानक घाटियों के बीच आ गये, चारों तरफ कुछ हरे कुछ भूरे पहाड़ थे और उनसे आगे धुंधली सी हल्की चमक लिये ऊँची बर्फ से ढकी चोटियां थी.
हर दो चार किलोमीटर पर सड़्क किनारे लकड़ी की गुमटियां बनी थी, जिसके बाहर मिलिट्री के जवान मुस्तैद खड़े थे.


 रशीद ने मुझसे पूछा अच्छी कश्मीरी चाय कुछ आगे मिलेगी आप बोलो तो रुक सकते हैं” “हां-हां क्यों नहीं मैने कहा, कुछ ही आगे एक गाँव आया, सड़क किनारे एक छोटा सा ठीया था. गाड़ी से उतरते ही एक मीठी और भीनी भीनी सी खुशबू से सामना हुआ. चाय और टोस्ट वाकई बहुत अच्छे थे. हम मज़ा ले ही रहे थे,  तभी एक जीप के ब्रेकों के चीखने की आवाज़ आयी दो लोग तेजी से उतर कर आये और हम तक पहुंच कर कहा अनंतनाग के पास हमला हुआ हैं, आप लोग अगली खबर मिलते तक रुकेंगे तो ठीक रहेगा.....






क्रमश:...

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

जिन कश्मीर नही देख्या.......

कश्मीर के बारे मे पढ़ना और सुनना एक लम्बे समय तक होता रहा, तस्वीरें भी जब-जब देखी ऐसा लगता मानो हर तस्वीर मे से एक रास्ता निकल आयेगा और हम सीधे उस तस्वीर में दिख रहे रास्ते के जरिये कश्मीर मे प्रवेश कर जायेंगे, काश ऐसा हो पाता...
प्राकृतिक सौन्दर्य से मंत्र मुग्ध होते हुए, आतंक की हवा के जेरेसाया कोई कैसा मह्सूस कर सकता है? यह बयान करना इसलिये सम्भव नही है, क्योंकि दोनो ही अहसास एक साथ आपके दिमाग पर हरदम हावी रहते हैं, और हम दोनो से ही कभी मुक्त नहीं रह पाते.



खैर मेरी कोशिश है आपको मेरी कश्मीर यात्रा के कुछ ऐसे पहलुओं से रूबरू कराऊं, जो आमतौर पर सामने नहीं आ पाती.


शाम 5 बजे जब हमारी ट्रेन जम्मु स्टेशन पहुंची.......
...शेष अगली बार...